Wednesday, 17 September 2014

कर शुक्रिया

कर शुक्रिया, जब सुबह का दीदार हो,
कहीं किसी ने पिछली रात, 
इस दुनिया को अलविदा कहा होगा... 
कर शुक्रिया, जब दिखे माँ का चेहरा, 
कल किसी ने अपने खुदा को खोया होगा... 
कर शुक्रिया, जब पिता ने तुझे निकम्मा कहा, 
जाने कितने इस मार्गदर्शक के बिना भटक गये... 
कर शुक्रिया, पीने को कलश भर जल मिला, 
कही एक बच्चा इसकी अधूरी चाह मे अग्नि को अर्पित हुया... 
कर शुक्रिया, खड़ा है तू अपने पैरो पर, 
जाने कितनो ने हाथो मे चप्पल पहने ज़िंदगी गुजारी है... 
कर शुक्रिया, तेरी किस्मत तेरे हाथो मे है, 
कही कोई पिता अपने बच्चे का सर सहलाने मे असक्षम है... 
कर शुक्रिया, गुनगुना लेता हे तू हर सुर को, 
किसी की माँ लोरी सुनाने को आँसू बहाती है... 
कर शुक्रिया, आज सामना नही हुआ रास्ते मे मौत से, 
आज भी जाने कितनी ज़िंदगिया रूठी हैं... 
कर शुक्रिया, हर नीवाले का जिसने तुझे साँसे बक्शी हैं, 
इस रोटी की खातिर आज एक औरत ने अपनी इज़्ज़त दफनाई है..

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