Wednesday, 24 September 2014

अच्छे थे वो दिन


अच्छे थे वो दिन
जब रिश्तो की समझ ना थी,
ना मालूम था
ये टूटते भी हैं,
बनते बिगड़ते सिलसिलो में
रिश्ते छूटते भी हैं ..

ना मालूम था,
की दिल दुख़्ता भी है,
जब कोई अपना जाता है,
कहाँ जाता है,
ये कभी किसी ने बताया ही नही,
फिर कब आता हे लौट कर ,
ये समझाया भी नहीं..

हम तो समझते थे,
की यूँ ही रहेगा सब कुछ,
हस्ता मुस्कुराता,
ना कोई जाएगा कहीं,
ना कही हमको जाना होगा..

उंगलिया भी कम पड़ती थी,
दोस्तो के नाम गिन ने में,
एक एक नाम पर दो दो चेहरे,
नज़र आते थे ज़हन में..

कैसी भी हो दूरियाँ,
एक आवाज़ मे मिट जाती थी,
दोस्तो के खो जाने को,
छुपन छुपाई कहते थे..

अच्छे थे वो दिन,
जब रिश्तों की समझ ना थी..

Wednesday, 17 September 2014

कर शुक्रिया

कर शुक्रिया, जब सुबह का दीदार हो,
कहीं किसी ने पिछली रात, 
इस दुनिया को अलविदा कहा होगा... 
कर शुक्रिया, जब दिखे माँ का चेहरा, 
कल किसी ने अपने खुदा को खोया होगा... 
कर शुक्रिया, जब पिता ने तुझे निकम्मा कहा, 
जाने कितने इस मार्गदर्शक के बिना भटक गये... 
कर शुक्रिया, पीने को कलश भर जल मिला, 
कही एक बच्चा इसकी अधूरी चाह मे अग्नि को अर्पित हुया... 
कर शुक्रिया, खड़ा है तू अपने पैरो पर, 
जाने कितनो ने हाथो मे चप्पल पहने ज़िंदगी गुजारी है... 
कर शुक्रिया, तेरी किस्मत तेरे हाथो मे है, 
कही कोई पिता अपने बच्चे का सर सहलाने मे असक्षम है... 
कर शुक्रिया, गुनगुना लेता हे तू हर सुर को, 
किसी की माँ लोरी सुनाने को आँसू बहाती है... 
कर शुक्रिया, आज सामना नही हुआ रास्ते मे मौत से, 
आज भी जाने कितनी ज़िंदगिया रूठी हैं... 
कर शुक्रिया, हर नीवाले का जिसने तुझे साँसे बक्शी हैं, 
इस रोटी की खातिर आज एक औरत ने अपनी इज़्ज़त दफनाई है..

मौत का स्वाद

चलती गाड़ी के साथ उड़े जा रहा था मेरा मन
सोचा ना था अगले मोड़ पर ज़िंदगी की आखरी झलक दिखेगी,
यूँही देखा गाड़ी की खिड़की से बाहर
एक पिंजरे मे कई मासूम ज़िंदगिया चहक रहीं थी,
अगले पलो से अंजान एक दूसरे से जाने क्या गुफ्तगू कर रहीं थी,
उनको नहीं था कुछ मालूम
लेकिन उनके पिंजरे ने मुझे बता दिया,
उनकी रगो मे बहता खून जल्द ही नालियों मे बहेगा
उनके परो को नौचकर उनका मास बिकेगा,
तब ही देखा दो आँखे मुझे एकटक देख रहीं थी,
कुछ कह रही थी या पूछ रही थी, मालूम नहीं
ज़िंदगी और मौत के बीच की जैसे झलक थी,
क्या करू कैसे करू
मौत देखी नहीं पर महसूस हो रही थी,
जान उसकी जाती
जाने घुटन मुझे क्यू हो रही थी,
थी वो मुर्गियाँ मगर साँस तो वो भी लेती हैं
उनके सीने मे भी दिल है
दर्द वो भी महसूस करती हैं,
सालों हुए उन आँखो में झाके
पर जैसे अभी की बात हो,
मौत आई उसे एक बार
रोज़ ग्लानि मुझे क्यों होती है,
इस कड़वी मौत का स्वाद कोई चटखारे ले उड़ाएगा,

उसकी मौत का स्वाद आज फिर किसी की महफ़िल सजाएगा |